गुरुवार, 15 जनवरी 2015

असली हीरा

असली हीरा 


एक महात्मा ने प्रसन्न होकर एक ग्रामीण को एक सुन्दर चम्किला पत्थर उपहार मे दिया। वह पत्थर बेश किम्ति हीरा था।  वह ग्रामिण प्रसन्नता पुर्बक उस हिरे को अपने घर मे गया।  अब वह सोच रहा  था  की  अब मै संसार का सुखी और धनी व्यक्ति हो jaunga . मेरे पास वह सब कुछ  होगा , जिस्की लोग कामना करते है।  अग्ले दिन प्रात : काल वह उसी महात्मा के पास गया।  वह प्रसन्न नजर नही आया।  महात्मा ने पुछा -आज प्रात काल इतनी जल्दी कैसे आगये  ? ग्रामीण बोला - " मै कल रात  एक पल भी सो नही  सका।  सारी रात करवत बदलता राहा। " एक क्षण भी शान्ति नही मिली। मै वह हीरा  आपको लौताने आया हु, जो आपने मुझे कल दिया था। इसके बदले मे मुझे सम्पति दे दिजिए। महात्मा जी हसे  -मेरे पास तो कुच भी देने का  नही है। ग्रामिण बोला "आपके पास अवस्य कोइ बडी सम्पति है; जिसकी तुलना मे आपने इश हिरे का  तुच्छ समझकर मुझे दे दिए। मुझे वही  चाहिए। "

जब तक मन -बुद्धी मे जंग पदार्थ ओं का  आकर्षण है , जब टक सच्चे सुख व शान्ति की  प्राप्ति नही हो सक्ती।  मन कि शान्ति हि सच्चे दौलत है , साच्ची सम्पदा है।  यह धन सन्तोष से ही मिलता है।