शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

दु:ख का अन्त




भगवान गौतम बुद्ध ने जीवन का जैसा सूक्ष्म विश्लेषण किया है , वैशा फिर कभी किसि ने नही किया।  उन्होने जीवनकी समस्याओ के उतर  शास्त्र से नही दिए, विश्लेषण प्रक्रिया से दिए।  उन्होने कहा की मै जो कह्ता हु उस पर सोचना , बिचारना , मनन करना , उसको जीवान मे करके देख्ना।  तुम उसे अनुभव की कसौटी पर कस के देखना, उसे इस लिए मत मन लेना कि गुरु ने कहा है।

बुद्ध ने कहाँ सुख हो या दु :ख , हानी हो या लाभ ,संयोग हो या वियोग,जन्म हो या मृत्यु , मान हो या अपमान कारण तुम हो।  कारण अपने भितर खोजना।  तुम्हारे जीवन के बागडोर तुम्हारे हात मे है।  जहर पिना हो तो जहर पियो,अमृत पिना हो तो अमृत पियो , प्याली तुम्हारे हात मे है।  निर्णय तुमको करना है कारण तुम हो। 

तुम अपने दिपक खुद बनो।  किसि दुसरेके सहारे जिने की कोशिश मत करो।  अपना प्रकाश ही काम आता है , अपना ज्ञान ही काम आता है। दुसरे क प्रकाश या ज्ञान तो समय पर धोखा दे जता है। तुम स्वयं प्रकाशवान बनो ज्ञानवान बनो। कोई ज्ञानी कोई गुरु  कोई शास्त्र तुम्हे प्रकाश दिखा सक्ता है , रोशनी दिखा सक्ता है परन्तु खोजना तो तुम्हे ही पडेगा।  जीवन का सत्य स्वयं खोज्ने से मिलता है। दुसरे का दिया हुवा सत्य तुम्हे काम नही आएगा। स्वयं अपने कदमो पर चलो। 

गौतम बुद्ध ने जो धर्म चक्र चलाया था उसकी यह विशेषता है कि बिना एक बुन्द बहाये वो धर्म चक्र पुरे संसार मे फैल गया।  वो अपने जीवनमे कभी क्रोधित नही हुए।  कभी कठोर या कर्कश शब्द नही बोले।  प्राणी मात्र के प्रति उन्मे करुणा , प्रेम,दया, स्नेह व मैत्री के भाव थे।

उन्होने अपने भिक्षुओ से लोगों के शान्ति ,संतोष ,सत्य व आनन्द का संदेश देने के लिए कहा। लोगों के अज्ञान अबिध्या , भ्रम और संदेहो को दूर करने के लिए कहाँ।
बुद्ध कहते थे कि इसकी फिक्र छोडो कि दु :ख कैसे होता  है।  यह पुछो कि दु :ख का अन्त कैसे होता है।  यह चिन्ता छोडो कि दु:ख का प्रारम्भ कैसे हुआ ? क्यू हुआ ?,किस्ने दिया ?, येह पुछो कि अन्त कैसे हो सक्ता है ? मै अन्तजानता हु। तुम दु :ख के अन्त की बात करो।  दु :ख को दूर करने कि बात करो।