शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

गुरु कैसा हो ?

शिस्यभाव हो, वह गुरु हो सक्ता है।  मतलब जो मूर्ख से ,बच्चे से , पसुपंक्षी से , प्राकृतिक से, खुद की  भूल से, भी सिख्ता रहता हो, व्यवहारिक होता रहता  हो , बिनम्र हो , जो शिस्य बन सक्त है वहि योग्य गुरु बन सक्त है।
जिस गुरु सन्त महापुरुष मे यह बात हो -

  1. जो हमारे दृष्टि मे वास्तविक बोधवान , तत्वज्ञ दिख्ते हो , और जिन्के सिवाए और किसिमे वैसी अलौकिकता , विलक्षणता, न दिख्ती हो। 
  2. जो कर्म योग ज्ञान योग , भक्ति योग आदि साधनो को तत्वसे ठिकठाक जान्नेवाला हो। 
  3. जिनके सङ्गत से , बच्नों से हमारे हृदय मे रहने वाली  शंकाए बिना पुछे ही स्वत : दूर हो जाती हो। 
  4. जिस्के पासमे रहनेसे प्रसन्नता, शान्ति का अनुभव होता हो। 
  5. जो हमारे साथ केवल हमारे हितके लिए ही सम्बन्ध रख्ते हुवे दिख्ते  हो। 
  6.  जो हमारेसे किसी बस्तु किन्चिंमात्र भी आशा न रख्ता हो 
  7. जिन्की सम्पूर्ण चेष्टाए केवल साध्को के हित के लिए ही  होती हों। 
  8. जिनके पास रहने से लक्ष्य के तरफ हमारी लगन स्वत: बदती हों। 
  9. जिन्के संघ दर्शन , भाषण स्मरण आदि से हमारे दुर्गुण दुराचार दूर होकर  स्वत: सद्गुण -सदाचाररुपी दैवी सम्पति आती हों। 
  10. दे देता है  , आपको जो पुरी तरह निचोड कर देता है आपको जो दुनिया मे बेजोड है। जब टक 
जब तक हम खुद योग्य शिस्य नही हो जाते है , तबतक योग्य गुरु पहचान्ना या मिल्ना मुस्किल है।  जिस्के पास हर समस्या के समाधान हो वही गुरु , जो खुद रोग व शोक मे रह रहा है वह हमे क्या दे पयेगा ?

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