शिस्यभाव हो, वह गुरु हो सक्ता है। मतलब जो मूर्ख से ,बच्चे से , पसुपंक्षी से , प्राकृतिक से, खुद की भूल से, भी सिख्ता रहता हो, व्यवहारिक होता रहता हो , बिनम्र हो , जो शिस्य बन सक्त है वहि योग्य गुरु बन सक्त है।
जिस गुरु सन्त महापुरुष मे यह बात हो -
जिस गुरु सन्त महापुरुष मे यह बात हो -
- जो हमारे दृष्टि मे वास्तविक बोधवान , तत्वज्ञ दिख्ते हो , और जिन्के सिवाए और किसिमे वैसी अलौकिकता , विलक्षणता, न दिख्ती हो।
- जो कर्म योग ज्ञान योग , भक्ति योग आदि साधनो को तत्वसे ठिकठाक जान्नेवाला हो।
- जिनके सङ्गत से , बच्नों से हमारे हृदय मे रहने वाली शंकाए बिना पुछे ही स्वत : दूर हो जाती हो।
- जिस्के पासमे रहनेसे प्रसन्नता, शान्ति का अनुभव होता हो।
- जो हमारे साथ केवल हमारे हितके लिए ही सम्बन्ध रख्ते हुवे दिख्ते हो।
- जो हमारेसे किसी बस्तु किन्चिंमात्र भी आशा न रख्ता हो
- जिन्की सम्पूर्ण चेष्टाए केवल साध्को के हित के लिए ही होती हों।
- जिनके पास रहने से लक्ष्य के तरफ हमारी लगन स्वत: बदती हों।
- जिन्के संघ दर्शन , भाषण स्मरण आदि से हमारे दुर्गुण दुराचार दूर होकर स्वत: सद्गुण -सदाचाररुपी दैवी सम्पति आती हों।
- दे देता है , आपको जो पुरी तरह निचोड कर देता है आपको जो दुनिया मे बेजोड है। जब टक
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