- सामने मिठा बोलने वाला और पीठ पिछे आघात करने वाले दोस्तों को छोड़ देना ही उचित है, जैसे नीम को जितना भी दूधसे सींचे वह कड़वा ही रहेगा। ठीक इसी तरह बुरी संगतसे बचना ही अपने लिए और परिवार के हितमे होता है
- बिना सोचें समझे झगड़ा करनेवाला ,खर्च करनेवाला दिखावा करने वाला इंसान कभी सुखी नहीं रह सकता , कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, तभी आपका जीवन सफल हो सकता हैं। मकै खाने के लिए पहले मकै के एक दानेका त्याग करना पड़ता है, तब मकैका बुट्टा हमें मिलता हैं।
- बुराई एक ऐसी बस्तु है आप जब चाहे खुदको बुरा बना सकते है , जब चाहे दूसरे की बुराई कर सकते है लेकिन दोनोंका अर्थ है पाप ,इस लिए किसी की बुराई करनेसे पहले अपने आपको देखिए फिर आप हर आदमीका भला ही सोचेंगे जो दूसरे के लिए फायदासे ज्यादा हितकारी होगा।
- धन की भूख और बसना की भूख कभी नहीं मिटटी और बढ़ जाती है , अगर इनको मिटाना हो तो मानव सेवा करो , दु :खी की सेवा करो ,अपने आपको संतुस्ट पाओगे।
- अगर आप अटल है और मजबूत है तो आदमी के आगे कोई भी काम मुस्किल नहीं है ,अगर काम सेवा भावना का है तो एक दिन आपको सफलता जरूर मिलेगी। अगर काम में स्वार्थ और निंदा है तो आपकी जिंदगी गुजर जायगी लेकिन कभी सफलता नहीं मिलेगी, अपना ही नाश होगा। दूसरे का भलाई सोचने से हमेसा खुस रहोगे.
- कर्म ही फल है , दया ही दान है ,छल कपट छोड़कर दया और माफ़ करना सिखो किसी की खुसी और दु:खमे शामिल होना सिखों आप अपने आपकी सम्पूर्ण मनुस्य पाओगे ,जो मनुष्य सिर्फ अपने बारे में सोचताहै ,उसका जीवन भी पशु सामान है।
- जैसे किसान खेतमें पहले बीज डालता है ,अपनी मेहनत से उसकी दिनरात देखभाल करता है ,तब कही जाकर उसे फल मिलता है ,इसी प्रकार अगर मानव जीवनमे कुछ पाना है तो पहले दिन दु:खी मानव की सेवा करना सिखों और सुख आपको अपने अंदर ही मिल जाएंगे।
गुरुवार, 22 जनवरी 2015
अनमोल बाणी
खुद को योग्य बनाए
एक युवा इञ्जियरिङ्ग के डिग्री प्राप्त करके नोकरी खोजना सुरु किया और सबसे पहले वह उस कम्पनी मे आबेदन दिया जहा काम सिक्ने और जान्ने का अच्छा मौका मिल्ने के आशा था। संयोग बस उस कम्पनी मे केवल एक typist क स्थान खाली था। युवा तुरन्त हा बोल्दीय और चार दिन के बाद आने का बचन दे कर चले गए।
चार दिन बाद जब वो कम्पनी मे काम सम्हाला तब manager पुछा -" आप तत्काल काम करने के लिए चाहते थे ,लेकिन चार दिन आप क्यू बर्बाद किए ?"
युवा बोला -"हमको ताइप करना अच्चेसे नही आता था ,इसलिए चार दिन मे मै ताइप का अच्छेसे अभ्यास किया और अब हमे पुरा बिस्वाश है की ये काम करने के लिए मै हरेक प्रकार से सक्षम हु। "
जिम्मेवारी का काम तन मन और लगन से करने की आदत के कारण वो युवा अन्तत : संयुक्त राज्य अमेरिकाका सर्बोच्च पद मे पहुच गया।
वो युवा थे अमेरिका क ३१ औ राष्ट्रपति हर्बर्ट क्लार्क।
चार दिन बाद जब वो कम्पनी मे काम सम्हाला तब manager पुछा -" आप तत्काल काम करने के लिए चाहते थे ,लेकिन चार दिन आप क्यू बर्बाद किए ?"
युवा बोला -"हमको ताइप करना अच्चेसे नही आता था ,इसलिए चार दिन मे मै ताइप का अच्छेसे अभ्यास किया और अब हमे पुरा बिस्वाश है की ये काम करने के लिए मै हरेक प्रकार से सक्षम हु। "
जिम्मेवारी का काम तन मन और लगन से करने की आदत के कारण वो युवा अन्तत : संयुक्त राज्य अमेरिकाका सर्बोच्च पद मे पहुच गया।
वो युवा थे अमेरिका क ३१ औ राष्ट्रपति हर्बर्ट क्लार्क।
शुक्रवार, 16 जनवरी 2015
उद्धारता
एक दिन किसी राज्यका राजा हाती पर सवार होकर घुम्ने के लिए निकले। रास्तेमे एक जगह कुछ लडका सब पत्थरसे पाका हुआ बेल तोड रहा था। संयोग से उनके चलाए हुवे पत्थर से राजा के मथामे लग गया और खुन आगया।
उनके सिपाही लड़केको पकड़कर महाराज के आगे पेश किया। महाराज इस मामले मंत्री से राय पुछे। सभिने बोला की "दुष्ट लड़केको कठोर दण्ड देना चाहिए "
मंत्री से सल्लाह लेनेके बाद महाराज पुछे " ये बच्चा सब वहा क्या कर रहा था ?
"सरकार ये सब वृक्ष पर पत्थर मार रहे थे।
महाराज फिर पुछे " क्यो ? , क्या चिज के लिए ?"
मंत्री बोले -"सरकार बेल के लिए। "
कुछ समय राजा चुप लागे और फिर बोले " जब वृक्ष पत्थर का चोट खा करके मिठा फल देता है तब हम इनको दण्ड कैसे दे ? हम मनुष्य होकरके वृक्ष जैसा उद्धार नही हो सकते ? ये सिधा साधा बच्चे कों छोड दिया जय और इनको पेट भर फलफुल खिलाया जाए। क्यु कि ये सब बेचारे फल के लिए पत्थर मार रहे थे।
उनका आज्ञा क पालन तुरन्त हुआ और फल खा कर बच्चे सब हस्ते-हस्ते अपने घर चले गए।
उनके सिपाही लड़केको पकड़कर महाराज के आगे पेश किया। महाराज इस मामले मंत्री से राय पुछे। सभिने बोला की "दुष्ट लड़केको कठोर दण्ड देना चाहिए "
मंत्री से सल्लाह लेनेके बाद महाराज पुछे " ये बच्चा सब वहा क्या कर रहा था ?
"सरकार ये सब वृक्ष पर पत्थर मार रहे थे।
महाराज फिर पुछे " क्यो ? , क्या चिज के लिए ?"
मंत्री बोले -"सरकार बेल के लिए। "
कुछ समय राजा चुप लागे और फिर बोले " जब वृक्ष पत्थर का चोट खा करके मिठा फल देता है तब हम इनको दण्ड कैसे दे ? हम मनुष्य होकरके वृक्ष जैसा उद्धार नही हो सकते ? ये सिधा साधा बच्चे कों छोड दिया जय और इनको पेट भर फलफुल खिलाया जाए। क्यु कि ये सब बेचारे फल के लिए पत्थर मार रहे थे।
उनका आज्ञा क पालन तुरन्त हुआ और फल खा कर बच्चे सब हस्ते-हस्ते अपने घर चले गए।
दु:ख का अन्त
भगवान गौतम बुद्ध ने जीवन का जैसा सूक्ष्म विश्लेषण किया है , वैशा फिर कभी किसि ने नही किया। उन्होने जीवनकी समस्याओ के उतर शास्त्र से नही दिए, विश्लेषण प्रक्रिया से दिए। उन्होने कहा की मै जो कह्ता हु उस पर सोचना , बिचारना , मनन करना , उसको जीवान मे करके देख्ना। तुम उसे अनुभव की कसौटी पर कस के देखना, उसे इस लिए मत मन लेना कि गुरु ने कहा है।
बुद्ध ने कहाँ सुख हो या दु :ख , हानी हो या लाभ ,संयोग हो या वियोग,जन्म हो या मृत्यु , मान हो या अपमान कारण तुम हो। कारण अपने भितर खोजना। तुम्हारे जीवन के बागडोर तुम्हारे हात मे है। जहर पिना हो तो जहर पियो,अमृत पिना हो तो अमृत पियो , प्याली तुम्हारे हात मे है। निर्णय तुमको करना है कारण तुम हो।
तुम अपने दिपक खुद बनो। किसि दुसरेके सहारे जिने की कोशिश मत करो। अपना प्रकाश ही काम आता है , अपना ज्ञान ही काम आता है। दुसरे क प्रकाश या ज्ञान तो समय पर धोखा दे जता है। तुम स्वयं प्रकाशवान बनो ज्ञानवान बनो। कोई ज्ञानी कोई गुरु कोई शास्त्र तुम्हे प्रकाश दिखा सक्ता है , रोशनी दिखा सक्ता है परन्तु खोजना तो तुम्हे ही पडेगा। जीवन का सत्य स्वयं खोज्ने से मिलता है। दुसरे का दिया हुवा सत्य तुम्हे काम नही आएगा। स्वयं अपने कदमो पर चलो।
गौतम बुद्ध ने जो धर्म चक्र चलाया था उसकी यह विशेषता है कि बिना एक बुन्द बहाये वो धर्म चक्र पुरे संसार मे फैल गया। वो अपने जीवनमे कभी क्रोधित नही हुए। कभी कठोर या कर्कश शब्द नही बोले। प्राणी मात्र के प्रति उन्मे करुणा , प्रेम,दया, स्नेह व मैत्री के भाव थे।
उन्होने अपने भिक्षुओ से लोगों के शान्ति ,संतोष ,सत्य व आनन्द का संदेश देने के लिए कहा। लोगों के अज्ञान अबिध्या , भ्रम और संदेहो को दूर करने के लिए कहाँ।
बुद्ध कहते थे कि इसकी फिक्र छोडो कि दु :ख कैसे होता है। यह पुछो कि दु :ख का अन्त कैसे होता है। यह चिन्ता छोडो कि दु:ख का प्रारम्भ कैसे हुआ ? क्यू हुआ ?,किस्ने दिया ?, येह पुछो कि अन्त कैसे हो सक्ता है ? मै अन्तजानता हु। तुम दु :ख के अन्त की बात करो। दु :ख को दूर करने कि बात करो।
गुरु कैसा हो ?
शिस्यभाव हो, वह गुरु हो सक्ता है। मतलब जो मूर्ख से ,बच्चे से , पसुपंक्षी से , प्राकृतिक से, खुद की भूल से, भी सिख्ता रहता हो, व्यवहारिक होता रहता हो , बिनम्र हो , जो शिस्य बन सक्त है वहि योग्य गुरु बन सक्त है।
जिस गुरु सन्त महापुरुष मे यह बात हो -
जिस गुरु सन्त महापुरुष मे यह बात हो -
- जो हमारे दृष्टि मे वास्तविक बोधवान , तत्वज्ञ दिख्ते हो , और जिन्के सिवाए और किसिमे वैसी अलौकिकता , विलक्षणता, न दिख्ती हो।
- जो कर्म योग ज्ञान योग , भक्ति योग आदि साधनो को तत्वसे ठिकठाक जान्नेवाला हो।
- जिनके सङ्गत से , बच्नों से हमारे हृदय मे रहने वाली शंकाए बिना पुछे ही स्वत : दूर हो जाती हो।
- जिस्के पासमे रहनेसे प्रसन्नता, शान्ति का अनुभव होता हो।
- जो हमारे साथ केवल हमारे हितके लिए ही सम्बन्ध रख्ते हुवे दिख्ते हो।
- जो हमारेसे किसी बस्तु किन्चिंमात्र भी आशा न रख्ता हो
- जिन्की सम्पूर्ण चेष्टाए केवल साध्को के हित के लिए ही होती हों।
- जिनके पास रहने से लक्ष्य के तरफ हमारी लगन स्वत: बदती हों।
- जिन्के संघ दर्शन , भाषण स्मरण आदि से हमारे दुर्गुण दुराचार दूर होकर स्वत: सद्गुण -सदाचाररुपी दैवी सम्पति आती हों।
- दे देता है , आपको जो पुरी तरह निचोड कर देता है आपको जो दुनिया मे बेजोड है। जब टक
समस्या से भागे नही, सामना करे
एक बार बनारस में स्वामी विवेकनन्द जी मां दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे कि तभी वहां मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया। वे उनसे प्रसाद छिनने लगे वे उनके नज़दीक आने लगे और डराने भी लगे। स्वामी जी बहुत भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए दौड़ कर भागने लगे। वो बन्दर तो मानो पीछे ही पड़ गए और वे भी उन्हें पीछे पीछे दौड़ाने लगे।
पास खड़े एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रहे थे, उन्होनें स्वामी जी को रोका और कहा - रुको! डरो मत, उनका सामना करो और देखो क्या होता है। वृद्ध सन्यासी की ये बात सुनकर स्वामी जी तुरंत पलटे और बंदरों के तरफ बढऩे लगे। उनके आश्चर्य काठिकाना नहीं रहा जब उनके ऐसा करते ही सभी बन्दर तुरंत भाग गए। उन्होनें वृद्ध सन्यासी को इस सलाह के लिए बहुत धन्यवाद किया।
इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में इसका जिक्र भी किया और कहा - यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो, तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो। वाकई, यदि हम भी अपने जीवन में आये समस्याओं का सामना करें और उससे भागें नहीं तो बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जायेगा!
सफलता के लिए ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए
सफलता के लिए ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए |
एक बार स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे। अचानक, एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगाते देखा। किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था। तब उन्होंने ने एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे। उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा, फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाए। सभी बिलकुल सटीक लगे।
ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पुछा - स्वामी जी, भला आप ये कैसे कर लेते हैं ? आपने सारे निशाने बिलकुल सटीक कैसे लगा लिए? स्वामी विवेकनन्द जी बोले असंभव कुछ नहीं है, तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ। अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए। तब तुम कभी चूकोगे नहीं। यदि तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो। कोइ कम कर रहे हो तो सिर्फ काम के बरेमे सोचो।
गुरुवार, 15 जनवरी 2015
हर चीज का हल होता है
एक बार एक राजा की सेवा से प्रसन्न होकर एक साधू नें उसे एक लौकेट दिया और कहा की राजन इसे अपने गले मे डाल लो और जिंदगी में कभी ऐसी परिस्थिति आये की जब तुम्हे लगे की बस अब तो सब ख़तम होने वाला है ,परेशानी के भंवर मे अपने को फंसा पाओ ,कोई प्रकाश की किरण नजर ना आ रही हो ,हर तरफ निराशा और हताशा हो तब तुम इस लौकेट को खोल कर इसमें रखे कागज़ को पढ़ना ,उससे पहले नहीं!
राजा ने वह लौकेट अपने गले मे पहन लिया !एक बार राजा अपने सैनिको के साथ शिकार करने घने जंगल मे गया! एक शेर का पीछा करते करते राजा अपने सैनिकों से अलग हो गया और दुश्मन राजा की सीमा मे प्रवेश कर गया,घना जंगल और सांझ का समय , तभी कुछ दुश्मन सैनिकों के घोड़ों की टापों की आवाज राजा को आई और उसने भी अपने घोड़े को एड लगाई, राजा आगे आगे दुश्मन सैनिक पीछे पीछे! बहुत दूर तक भागने पर भी राजा उन सैनिकों से पीछा नहीं छुडा पाया ! भूख प्यास से बेहाल राजा को तभी घने पेड़ों के बीच मे एक गुफा सी दिखी ,उसने तुरंत स्वयं और घोड़े को उस गुफा की आड़ मे छुपा लिया ! और सांस रोक कर बैठ गया , दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज धीरे धीरे पास आने लगी ! दुश्मनों से घिरे हुए अकेले राजा को अपना अंत नजर आने लगा ,उसे लगा की बस कुछ ही क्षणों में दुश्मन उसे पकड़ कर मौत के घाट उतार देंगे ! वो जिंदगी से निराश हो ही गया था , की उसका हाथ अपने लौकेट पर गया और उसे साधू की बात याद आ गई ! उसने तुरंत लौकेट को खोल कर कागज को बाहर निकाला और पढ़ा ! उस पर्ची पर लिखा था —“यह भी कट जाएगा “
राजा को अचानक ही जैसे घोर अन्धकार मे एक ज्योति की किरण दिखी , डूबते को जैसे कोई सहारा मिला ! उसे अचानक अपनी आत्मा मे एक अकथनीय शान्ति का अनुभव हुआ ! उसे लगा की सचमुच यह भयावह समय भी कट ही जाएगा ,फिर मै क्यों चिंतित होऊं ! अपने प्रभु और अपने पर विश्वासरख उसने स्वयं से कहा की हाँ ,यह भी कट जाएगा !
और हुआ भी यही ,दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज पास आते आते दूर जाने लगी ,कुछ समय बाद वहां शांति छा गई ! राजा रात मे गुफा से निकला और किसी तरह अपने राज्य मे वापस आ गया !
दोस्तों,यह सिर्फ किसी राजा की कहानी नहीं है यह हम सब की कहानी है !हम सभी परिस्थिति,काम ,तनाव के दवाव में इतने जकड जाते हैं की हमे कुछ सूझता नहीं है ,हमारा डर हम पर हावी होने लगता है ,कोई रास्ता ,समाधान दूर दूर तक नजर नहीं आता ,लगने लगता है की बस, अब सब ख़तम ,है ना?
जब ऐसा हो तो २ मिनट शांति से बेठिये ,थोड़ी गहरी गहरी साँसे लीजिये ! अपने आराध्य को याद कीजिये और स्वयं से जोर से कहिये –यह भी कट जाएगा ! आप देखिएगा एकदम से जादू सा महसूस होगा , और आप उस परिस्थिति से उबरने की शक्ति अपने अन्दर महसूस करेंगे !
बच्चे का देशप्रेम
बच्चे का देशप्रेम
एक बर स्वामी बिबेकनन्द विदेश मे सेव खरिद रहे थे। दोकानदार उन्हें खराब सेव दे रहे थे। ये सब एक बच्चा देख रहा था। जब बिबेकनन्द वहाँ से चल्ने लगे तब उस बच्चे ने बिबेकनन्द से प्रार्थना करते हुवे बोला " येह सेव हमको दे दिजिए और इसका किमत हमसे ले लिजिये। "बिबेकनन्द को उस बच्चे क व्यवहार आश्चर्य जनक लगा। जब वो कारण पुछे तो बच्चे ने बोला - " येह सेव खराब है। ये सेव किनकर जब आप अपने देश जाएँगे , तो आप हमारे देश के बारेमे बरा बात सुनायेंगे , और येह मेरे लिए कलंक का बात है। "
बिबेकनन्द उनका देशप्रेम देख्ते हि रह गए। वो बोले - " हमे तुम्हारे देशप्रेम का गर्व है। हम तुम्हारे देशके बारेमे किसि से ऐसा ओसा बाट नही करने वाले है। बलकी हम अपने देशके पुरी जन्ता को बोलेंगे कि येह देशका बच्चा-बच्चा देशप्रेमी हैं। "
असली हीरा
असली हीरा
एक महात्मा ने प्रसन्न होकर एक ग्रामीण को एक सुन्दर चम्किला पत्थर उपहार मे दिया। वह पत्थर बेश किम्ति हीरा था। वह ग्रामिण प्रसन्नता पुर्बक उस हिरे को अपने घर मे गया। अब वह सोच रहा था की अब मै संसार का सुखी और धनी व्यक्ति हो jaunga . मेरे पास वह सब कुछ होगा , जिस्की लोग कामना करते है। अग्ले दिन प्रात : काल वह उसी महात्मा के पास गया। वह प्रसन्न नजर नही आया। महात्मा ने पुछा -आज प्रात काल इतनी जल्दी कैसे आगये ? ग्रामीण बोला - " मै कल रात एक पल भी सो नही सका। सारी रात करवत बदलता राहा। " एक क्षण भी शान्ति नही मिली। मै वह हीरा आपको लौताने आया हु, जो आपने मुझे कल दिया था। इसके बदले मे मुझे सम्पति दे दिजिए। महात्मा जी हसे -मेरे पास तो कुच भी देने का नही है। ग्रामिण बोला "आपके पास अवस्य कोइ बडी सम्पति है; जिसकी तुलना मे आपने इश हिरे का तुच्छ समझकर मुझे दे दिए। मुझे वही चाहिए। "
जब तक मन -बुद्धी मे जंग पदार्थ ओं का आकर्षण है , जब टक सच्चे सुख व शान्ति की प्राप्ति नही हो सक्ती। मन कि शान्ति हि सच्चे दौलत है , साच्ची सम्पदा है। यह धन सन्तोष से ही मिलता है।
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